Monday, August 1, 2011

ऐ गाफिल ! न समझा था , मिला था तन रतन तुझको ।

ऐ गाफिल ! न समझा था , मिला था तन रतन तुझको ।

मिलाया खाक में तुने, ऐ सजन ! क्या कहूँ तुझको ?

अपनी वजूदी हस्ती में तू इतना भूल मस्ताना …

अपनी अहंता की मस्ती में तू इतना भूल मस्ताना …

करना था किया वो न, लगी उल्टी लगन तुझको ॥

ऐ गाफिल ……।


जिन्होंके प्यार में हरदम मुस्तके दीवाना था…

जिन्होंके संग और साथ में भैया ! तू सदा विमोहित था…

आखिर वे ही जलाते हैं करेंगे या दफन तुझको ॥

ऐ गाफिल …॥


शाही और गदाही क्या ? कफन किस्मत में आखिर ।

मिले या ना खबर पुख्ता ऐ कफन और वतन तुझको ॥

ऐ गाफिल ……।



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