Thursday, October 28, 2010

नानक वाणी

नानक वाणी

गिआन अंजनु गुरि दीआ अगिआन अंधेर बिनासु।।
हरि किरपा ते संत भेटिया नानक मन परगासु।।1।।
हरि सजणु गुरु सेवदा गुर करणी परधानु।।
नानक नामु न वीसरै करमि सचै नीसाणु।।2।।
बलिहारी गुरु आपणे दिलहाड़ी सदवार।।
जिनि माणस ते देवते कीए करत न लागी वार।।3।।
वाहिगुरु नाम जहाज है चढ़े सो उतरे पार।।
जो श्रद्धा कर सेंवदे नानक पार उतार।।4।।
गुर की मूरति मन महि धिआनु गुर कै सबदि मंत्रु भनु मान।।
गुर के चरन रिदै लै धारउ गुरु पारब्रहमु सदा नमसकारउ।।5।।
घटि घटि मैं हरि जू बसै संतन कहिओ पुकारि।।
कहु नानक तिह भजु मना भउ निधि उतरहि पारि।।6।।
भै नासन दुरमति हरन कलि मैं हरि को नाम
निस दिन जो नानक भजै सफल होहि तिह काम।।7।।
जिहबा गुन गोबिंद भजहु करन सुनहु हरि नाम।।
कहु नानक सुन रे मना परहि न जम कै धाम।8।।
जनम जनम भरमत फिरिओ मिटिओ न जम को त्रासु।।
कहु नानक हरि भजु मना निरभै पावहि बासु।।9।।
जतन बहुत सुख के कीए दुःख को कीओ न कोइ।।
कहु नानक सुन रे मना हरि भावै सो होइ।।10।।
जगतु भिखारी फिरतु है सभ को दाता राम।।
कहु नानक मन सिमरु तिन पूरन होवहि काम।।11।।
तीरथ बरत अरु दान करि मन मैं धरै गुमानु।।
नानक निहफल जात तिहि जिउ कुंचर इसनानु।।12।।
जग रचना सब झूठ है जानि लेहु रे मीत।।
कहि नानक थिरु ना रहै जिउ बालू की भीत।।13।।
राम गइओ रावनु गइयो जा कउ बहु परवार।।
कहु नानक थिरु कछु नही सुपने जिउ संसारि।।14।।
चिंता ताकि कीजिये जो अनहोनि होइ।।
इह मारगु संसार को नानक थिरु नही कोइ।।15।।
संग सखा सभ तजि गये कोउ न निबहिओ साथ।।
कहु नानक इह बिपत मैं टेक एक रघुनाथ।।16।।
लालच झूठ बिकार मोह बिआपत मूड़े अंध।।
लागि परे दुरगंध सिउ नानक माइआ बंध।।17।।
तनु मनु धुन अरपउ तिसै प्रभु मिलावै मोहि।।
नानक भ्रम भउ काटीऐ चूकै जम की जोह।।18।।
पति राखी गुरि पारब्रहम तजि परपंच मोह बिकार।।
नानक सोऊ आराधीऐ अंतु न पारावारु।।19।।
आए प्रभ सरनागति किरपा निधि दइहाल।।
एक अखरु हरि मन बसत नानक होत निहाल।।20।।
देनहारु प्रभ छोडि कै लागहि आन सुआइ।।
नानक कहू न सीझई बिनु नावै पति जाइ।।21।।
उसतति करे अनेक जन अंतु न पारावार।।
नानक रचना प्रभि रची बहु बिधि अनिक प्रकार।।22।।
करण करण प्रभु एकु है दूसर नाही कोइ।।
नानक तिसु बलिहारणी जलि थलि मही अलि सोइ।।23।।
संत सरनि जो जनु परै सो जनु उधरनहार।।
संत की निंदा नानका बहुरि बहुरि अवतार।।24।।
सरब कला भरपूर प्रभ बिरथा जाननहार।।
जा कै सिमरनि उधरीऐ नानक तिसु बलिहार।।25।।
रूप न रेख न रंगु किछु त्रिहु गुण ते प्रभ भिंन।।
तिसहि बुझाए नानका जिसु होवै सुप्रसंन।।26।।
सति पुरखु जिनि जानिआ सतिगुरु तिस का नाउ।।
तिस कै संगि सिखु उधरै नानक हरिगुन गाउ।।27।।
फिरत फिरत प्रभ आइआ परिआ तउ सरनाइ।।
नानक की प्रभ बेनती अपनी भगति लाइ।।28।।
गुन गोबिंद गाइओ नहीं जनमु अकारथ कीन।।
कहु नानक हरि भजु मना जिहि बिधि जल को मीन।।29।।
तरनापो इउ ही गइओ लीओ जरा तनु जीति।।
कहु नानक भज हरि मना अउध जातु है बीति।।30।।
धनु दारा संपति सगल जिनि अपुनी करि मानि।।
इन मैं कुछ संगी नही नानक साचि जानि।।31
पतित उधारन भै हरन हरि अनाथ के नाथ।।
कहु नानक तिह जानिऐ सदा बसतु तुम साथ।।32।।
सभ सुख दाता राम है दूसर नाहिन कोइ।।
कहु नानक सुनि रे मना तिह सिमरत गति होइ।।33।।
जिह सिमरत गति पाईऐ तिहि भजु रे तै मीत।।
कहु नानक सुन रे मना अउध घटत है नीत।।34।।
पांच तत को तनु रचिओ जानहु चतुर सुजान।।
जिह ते उपजिओ नानका लीन ताहि मै मान।।35।।
सुख दुखु जिह परसै नही लोभ मोह अभिमानु।।
कहु नानक सुन रे मना सो मूरति भगवान।।36।।
उसतति निंदिआ नाहि जिहि कंचन लोह समानि।।
कहु नानक सुनु रे मना मुकति ताहि तै जानि।।37।।
हरख सोग जा कै नहीं बैरी मीत समान।।
कहु नानक सुनि रे मना मुकति ताहि तै जान।।38।।
जिहि माइआ ममता तजी सभ ते भइओ उदास।।
कहु नानक सुन रे मना तिहि घटि ब्रहम निवासु।।39।।
जो प्रानी ममता तजै लोभ मोह अहंकार।।
कहु नानक आपन तरै अउरन लेत उधार।।40।।
जिउ सुपना अरु पेखना ऐसे जग कउ जानि।।
इन मै कछु साचो नही नानक बिन भगवान।।41।।
निस दिन माइआ कारने प्रानी डोलत नीत।।
कोटन मै नानक कोऊ नाराइन जिह चीत।।42।।
जैसे जल ते बुदबुदा उपजै बिनसै नीत।।
जग रचना तैसे रची कहु नानक सुनु मीत।।43।।
प्रानी कछू न चेतई मदि माइआ कै अंध।।
कहु नानक बिन हरि भजन परत ताहि जम फंध।।44।।
जउ सुख कउ चाहै सदा सरनि राम की लेह।।
कहु नानक सुन रे मना दुरलभ मानुख देह।।45।।
माइआ कारनि धावही मूरख लोग अजान।।
कहु नानक बिनु हरि भजन बिरथा जनमु सिरान।।46।।
जो प्रानी निसि दिनि भजे रूप राम तिह जानु।।
हरि जनि हरि अंतरु नही नानक साची मानु।।47।।
मनु माइआ मै फधि रहिओ बिसरिओ गोबिंद नाम।।
कहु नानक बिनु हरि भजन जीवन कउने काम।।48।।
सुख मै बहु संगी भए दुख मै संगि न कोइ।।
कहु नानक हरि भजु मना अंति सहाई होइ।।49।।
दीन दरद दुख भंजना घटि घटि नाथ अनाथ।।
सरणि तुमारी आइयो नानक के प्रभ साथ।।50।।
काम क्रोध अरु लोभ मोह बिनसु जाइ अहंमेव।।
नानक प्रभ सरणागति करि प्रसादु गुरदेव।।51।।
(सुखमनि साहिब, महला-1.5.9, आसा दी वार व बावन अखरी में से)

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गुरु समीप पुनि करियो बासा, जो अति उत्कट हे जिज्ञासा।
गुरु मूरति को हियमें ध्याना धारै जो चाहे कल्याना।।1।।
मन की जानै सब गुरु, कहाँ छिपावै अंध।
सदगुरु सेवा कीजिए, सब कट जावे फंद।।2।।
निश्चलदासजी (विचार सागर)
वेद उदधि बिन गुरु लखे लागे लौन समान।
बादल गुरु मुख द्वार है अमृत से अधिकान।।

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