Thursday, October 28, 2010

अजन्मा है अमर आत्मा

अजन्मा है अमर आत्मा


व्यर्थ चिंतित हो रहे हो,
व्यर्थ डरकर रो रहे हो।
अजन्मा है अमर आत्मा,
भय में जीवन खो रहे हो।।
जो हुआ अच्छा हुआ,
जो हो रहा अच्छा ही है।
होगा जो अच्छा ही होगा...
यह नियम सच्चा ही है।
'गर भुला दो बोझ कल का,
आज तुम क्यों ढो रहे हो?
अजन्मा है...
हुई भूलें-भूलों का फिर,
आज पश्चाताप क्यों?
  कल् क्या होगा? अनिश्चित है,
आज फिर संताप क्यों?
जुट पड़ो कर्त्तव्य में तुम,
बाट किसकी जोह रहे हो?
अजन्मा है...
क्या गया, तुम रो पड़े?
तुम लाये क्या थे, खो दिया?
है हुआ क्या नष्ट तुमसे,
ऐसा क्या था खो दिया?
व्यर्थ ग्लानि से भरा मन,
आँसूओं से धो रहे हो।।
अजन्मा है....
ले के खाली हाथ आये,
जो लिया यहीं से लिया।
जो लिया नसीब से उसको,
जो दिया यहीं का दिया।
जानकर दस्तूर जग का,
क्यों परेशां हो रहे हो?
अजन्मा है...
जो तुम्हारा आज है,
कल वो ही था किसी और का।
होगा परसों जाने किसका,
यह नियम सरकार का।
मग्न ही अपना समझकर,
दुःखों को संजो रहे हो।
अजन्मा है.....
जिसको तुम मृत्यु समझते,
है वही जीवन तुम्हारा।
हो नियम जग का बदलना,
क्या पराया क्या तुम्हारा?
एक क्षण में कंगाल हो,
क्षण भर में धन से मोह रहे हो।।
अजन्म है....
मेरा-तेरा, बड़ा छोटा,
भेद ये मन से हटा दो।
सब तुम्हारे तुम सभी के,
फासले मन से हटा दो।
कितने जन्मों तक करोगे,
पाप कर तुम जो रहे हो।
अजन्मा है....
है किराये का मकान,
ना तुम हो इसके ना तुम्हारा।
पंच तत्त्वों का बना घर,
देह कुछ दिन का सहारा।
इस मकान में हो मुसाफिर,
इस कदर क्यों सो रहे हो?
अजन्मा है..
उठो ! अपने आपको,
भगवान को अर्पित करो।
अपनी चिंता, शोक और भय,
सब उसे अर्पित करो।
है वो ही उत्तम सहारा,
क्यों सहारा खो रहे हो?
अजन्मा है....
जब करो जो भी करो,
अर्पण करो भगवान को।
सर्व कर दो समर्पण,
त्यागकर अभिमान को।
मुक्ति का आनंद अनुभव,
सर्वथा क्यों खो रहे हो?
अजन्मा है....


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